भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का बस्तर संभाग अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की जनजातियाँ जैसे माड़िया, गोंड़, मुरिया, धुरवा, हल्बा, भतरा आदि अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपराओं के लिए जानी जाती हैं। बस्तर का प्राकृतिक सौंदर्य, उसकी वन संपदा और यहाँ की जनजातियों की अनूठी जीवनशैली इसे एक विशिष्ट पहचान दिलाती है।
बस्तर की जनजातियों में त्योहारों को मनाने की शैली भी अन्य समुदायों से अलग होती है। यहाँ के तिहार (त्योहार) सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आस्थाओं से जुड़े होते हैं। इन्हीं प्रमुख त्योहारों में से एक है नवा खाई तिहार, जो आदिवासी समाज का वर्ष का पहला और अति महत्वपूर्ण पर्व होता है। यह त्यौहार नई फसल के स्वागत के रूप में मनाया जाता है और इसमें परंपरागत रीति-रिवाजों का विशेष महत्व होता है।
नवा खाई तिहार का महत्व
नवा खाई तिहार का मुख्य उद्देश्य नई फसल के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना और उसे अपने पूर्वजों, इष्ट देवता तथा पेन (आदिवासी देवता) को समर्पित करना है। यह पर्व मुख्य रूप से नई फसल के स्वागत के रूप में मनाया जाता है, जिसमें आदिवासी समुदाय अपने इष्ट देवता तथा पेन को नई फसल अर्पित करने के बाद ही उसे ग्रहण करता है।
इस पर्व के दौरान, जब धान की पहली फसल तैयार होती है, तो उसे तोड़कर पहले पेन / पुरखाओं को अर्पित किया जाता है। इसके बाद, धान को भूनकर चिवड़ा बनाया जाता है, जिसे पूरे परिवार द्वारा ग्रहण किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान के रूप में की जाती है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य सहभागिता करते हैं।
नवा खाई तिहार मनाने की परंपरा
धान एकत्र करना:
जब खेतों में नई फसल पककर तैयार हो जाती है, तो आदिवासी समुदाय के लोग मिलकर धान की बालियाँ तोड़ते हैं।
इस धान को एकत्रित कर उसे साफ किया जाता है।
चिवड़ा बनाना:
एक नए हांडी (मिट्टी के बर्तन) में धान को भूनकर चिवड़ा बनाया जाता है।
इसे परिवार के सभी सदस्य मिलकर तैयार करते हैं।
पूर्वजों और देवताओं को अर्पण (टीका मांडना):
नए धान के चिवड़े को सबसे पहले अपने पूर्वजों, इष्ट देवताओं और पेन को अर्पित किया जाता है।
परिवार द्वारा चिवड़ा ग्रहण करना:
इसके बाद पूरा परिवार एक साथ बैठकर नए चिवड़े को ग्रहण करता है।
इसे कुडई पान (कूड़ही के पत्ते) में रखकर खाया जाता है।
बच्चों को पारंपरिक उपहार देना:
नवा खाई तिहार के अवसर पर परिवार के बड़े सदस्य छोटे बच्चों को नए कपड़े भेंट करते हैं।
लड़कों को मिट्टी के बैल और हल (नांगर) दिए जाते हैं, जिससे उन्हें खेती-बाड़ी की परंपरा और शिक्षा दी जाती है।
लड़कियों को मिट्टी के चूल्हे, बर्तन और कटोरियाँ दी जाती हैं, जिससे उन्हें अच्छे गृहिणी बनने की पारंपरिक शिक्षा मिलती है।
सामाजिक सौहार्द और आपसी संबंधों की मजबूती
नवा खाई तिहार केवल एक त्यौहार ही नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सामंजस्य का भी प्रतीक है।
इस अवसर पर परिवार और समुदाय के लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर नवा खाई की शुभकामनाएँ देते हैं।
वे एक-दूसरे को पारंपरिक व्यंजन जैसे दार बोबो (दाल-बड़ा), गुर बोबो (गुड़ बड़ा), लाई-चिवड़ा आदि भेंट करते हैं।
बासी तिहार: नवा खाई तिहार का दूसरा दिन
नवा खाई तिहार के दूसरे दिन बासी तिहार मनाया जाता है, जिसमें सामूहिक रूप से भोजन करने और पारंपरिक पेय पदार्थों का आनंद लिया जाता है।
इस दिन जनजातीय समाज चावल से बनी पारंपरिक पेय लंदा, महुए से बनी मंद (शराब) और सुराम (पेय पदार्थ) का सामूहिक रूप से सेवन करता है।
इसके साथ ही सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें मांसाहारी और शाकाहारी व्यंजन बनाए जाते हैं।
पूरे गाँव के लोग एक साथ बैठकर इस भोजन का आनंद लेते हैं और पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है।
नवा खाई तिहार की सांस्कृतिक विशेषताएँ
नृत्य और संगीत:
इस अवसर पर ढोल, मांदर और मोहरी की धुन पर गाँव के लोग पारंपरिक नृत्य करते हैं।
सामूहिक भोज:
सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी जाति और समुदाय के लोग शामिल होते हैं।
रिश्तों की मजबूती:
यह त्यौहार सामाजिक एकता को बढ़ाने में मदद करता है।
गाँव के सभी लोग एक साथ मिलकर इसे मनाते हैं और एक-दूसरे के घरों में जाकर शुभकामनाएँ देते हैं।
नवा खाई तिहार बस्तर के आदिवासी समाज के लिए केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि यह उनकी संस्कृति, परंपरा और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति का सम्मान करना और अपने पूर्वजों की परंपराओं को सहेज कर रखना कितना महत्वपूर्ण है। इस त्यौहार के माध्यम से सामाजिक समरसता और पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। नवा खाई तिहार के दौरान गाँव के लोग आपसी प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा देते हैं, जिससे समाज में एकता बनी रहती है। इसलिए, नवा खाई तिहार केवल एक तिहार नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली और आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
Posted inपरंपराएँ और त्योहार
